आजीवन फुले साहू अंबेडकर विचारधारा के प्रचार प्रसार में लगे रहे बहुजन विचारक लेखक हरि नरके से जुड़ी कुछ यादें – प्रो. डा.शंकर बोराडे

आजीवन फुले साहू अंबेडकर विचारधारा के प्रचार प्रसार में लगे रहे बहुजन विचारक लेखक हरि नरके से जुड़ी कुछ यादें –
प्रो. डा.शंकर बोराडे
Akluj Vaibhav News Network.
Chief Editor Bhagywant Laxman Naykude.
Akluj , Taluka Malshiras, District Solapur. Maharashtra State, India.
Mo. 9860959764.
अकलूज दिनांक 19/8/2023 :
हरि नरके से मेरी पहली मुलाकात पुणे में डा. बाबा आढ़ाव द्वारा समता प्रतिष्ठान के माध्यम से आयोजित “विषमता निर्मूलन शिविर ” में हुई। इस विषमता निर्मूलन शिविर में हरि नरके के साथ नरेंद्र दाभोलकर, अनिल अवचट, संजीव साने और अनेक कार्यकर्ता भी उपस्थित थे। ग्राम विकास के बारे में उस समय अण्णा हजारे ने अपने विचार रखे थे, गुजरात में हुई आरक्षित जगह विरोधी आंदोलन की आंखों देखी रिपोर्ट वहां के कार्यकर्ताओं ने रखी थी।
जाति अंत की लड़ाई, नामांतर आंदोलन, दलित मुक्ति आंदोलन, स्त्री मुक्ति आंदोलन, एक गाँव एक प्याऊ आंदोलन की दिशा आदि मुद्दों पर चर्चा हुई थी।
ऐसे शिविरों के माध्यम से उस समय के कार्यकर्ताओं का वैचारिक भरणपोषण होते रहता था, जाति तोड़ो, मनुष्य जोड़ो का नारा देते हुए युवक युवतियां बड़े पैमाने पर अंतर्जातीय विवाह कर रहे थे, हरि नरके ने भी वही किया।
ग. वा. बेहेरे के “सोबत ” साप्ताहिक में बाळ गांगल का महात्मा फुले की खिल्ली उड़ाने वाला लेख प्रकाशित हुआ। उसका पूरे महाराष्ट्र में विरोध हुआ, जगह जगह उसके निषेध में कार्यक्रम हुए, हम लोगों ने सिन्नर में निषेध सभा का आयोजन किया था, रुंजाजी माधव हांडगे, प्रो. शरद देशमुख ने अपने विचार रखे और इसी सभा में उन्हावणे नाम के शिक्षक ने भी निर्भयतापूर्वक अपना विरोध दर्ज किया था अपना प्रखर विरोध दर्ज कराने हमारा युवा नाई मित्र संजय सोनवणे भी समय निकालकर आया था। महाराष्ट्र की नजर में ‘सोबत’ के संपादक ग. वा. बेहेरे की आज मृत्यु हो चुकी है उत्साहपूर्वक हम सबने उस सभा में घोषित किया था। विशेष बात यह कि कुछ दिन के बाद ही उस संपादक का निधन हो गया। हमारी यह निषेध सभा लोगों के मन का असंतोष था और महात्मा ज्योतिराव फुले के जीवन कार्य से भावनात्मक लगाव प्रकट करने वाला कार्यक्रम था।
किन्तु हरि नरके ने इस लेख का अध्ययन करके उसके आक्षेपों का शोधात्मक तथ्य परक सप्रमाण प्रखर उत्तर दिया था।
सत्य शोधन का काम उस समय हरि नरके ने अपने हाथ में लिया और उसे आखिरी सांस तक कायम रखा।
आगे चलकर महाराष्ट्र सरकार ने ” महात्मा ज्योतिराव फुले चरित्र शोधन ” प्रकाशन समिति गठित किया और इस समिति के माध्यम से महात्मा फुले के साहित्य और महात्मा फुले से संबंधित वैचारिक लेखन का प्रकाशन सतत होते रहा।
महात्मा फुले समग्र वांग्मय इस महत्वपूर्ण ग्रंथ का संपादन डा. य. दि. फडके ने किया था। इस ग्रंथ का पहला संस्करण हाथों हाथ बिक गया दस हजार पुस्तकें दो दिन में वितरित की गईं , अगले संस्करण को हरि नरके ने संपादित किया और उसमें उन्होंने महात्मा फुले का ‘इच्छा पत्र’ भी शामिल किया इस दस्तावेज का शोध हरि नरके ने किया और असली कागज पत्र भी प्रकाशित किया, हरि नरके ने कोई काम हाथ में लिया तो उसे पूरा होने तक वे चुप नहीं बैठते थे।
सत्य शोधकों के अप्रकाशित साहित्य प्रकाशित करने के लिए उन्होंने जीवन भर मेहनत किया।
डा. बाबा आढ़ाव के समता प्रतिष्ठान से ‘पुरोगामी सत्य शोधक’ नाम से पत्रिका छपती थी, डा. बाबा आढ़ाव ने अगुवाई करके सत्यशोधक आंदोलन के अत्यंत दुर्लभ कागज पत्र ढूंढ़ ढूंढ़कर प्राप्त किया।
उनमें से दिनकर राव जवळकर समग्र वांग्मय, जागृतिकार पाळेकर जैसी पुस्तकें संपादित होकर प्रकाशित हुईं।
‘जागृतिकार पाळेकर’ पुस्तक को सदानंद मोरे ने संपादित किया और उसकी दीर्घ प्रस्तावना लिखी।
मैंने खुद “जागृतिकार भगवंतराव पाळेकर के समग्र लेखन शोधात्मक अध्ययन” विषय पर डा. दिलीप धोंडगे के मार्गदर्शन में शोध किया। उसमें मुझे उस ग्रंथ से बहुत मदद मिली।
सत्यशोधक केशवराव विचारे के विचारों का शोध करनेवाला ग्रंथ हरि नरके ने संपादित किया था, वह ग्रंथ मुझे अध्ययन के लिए नीळू फुले ने उपलब्ध कराया था।
‘पुरोगामी सत्यशोधक’ ने ‘ जैसा हमने फुले को देखा’ यह विषेशांक प्रकाशित किया था, इस काम में हरि नरके की भी सहभागिता थी। आगे चलकर इस विषेशांक के लेखों को संपादित करके हरि नरके ने ‘आम्ही पाहिलेले फुले’ ( जैसा हमने फुले को देखा) इसी नाम से पुस्तक प्रकाशित किया।
हरि नरके का जन्म विद्या बिना मति, गति, वित्त गए हुए परिवार में हुआ था उन्होंने डा. बाबा साहेब अंबेडकर से प्रेरणा लेकर शिक्षा प्राप्त की, एकलव्य ने द्रोणाचार्य को गुरु मानकर धनुर्विद्या का अभ्यास किया किन्तु अंगूठा गंवाना पड़ा, हरि नरके ने डा. अंबेडकर का फोटो सामने रखकर शिक्षा ग्रहण की और वे बुद्धिमान विद्यार्थी के रूप में जाने गए। टेल्को जैसे टाटा उद्योग समूह की कंपनी में काम करने वाला लड़का पुणे विद्यापीठ से ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट हुआ और बीए एमए की परीक्षाओं में उसे स्वर्णपदक मिला। विद्यापीठ के क्लास में भी हरि नरके शांत बैठने वाले विद्यार्थी नहीं थे व्याख्याताओं से उनका वाद परिसंवाद चालू ही रहता था ऐसा ही डा. आनंद यादव के साथ हुए एक वाद को उन्होंने समाज के सामने रखा था।
हरि नरके शासकीय समिति में सहभागी हुए उन्हें राजाश्रय का फायदा मिला। उन्होंने महाराष्ट्र राज्य के पिछड़ा वर्ग आयोग में काम किया। महात्मा फुले और डा. बाबा साहेब अंबेडकर के चरित्र साहित्य प्रकाशन समिति में हरि नरके समन्वयक थे। महात्मा फुले गौरव ग्रंथ सहित अनेक ग्रंथों का उन्होंने संपादन किया। महात्मा फुले के व्यक्तित्व के दुर्लक्षित पहलुओं पर उन्होंने अपने शोध के माध्यम से प्रकाश डाला। आज कौशल विकास शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है।
ज्योतिराव- सावित्रीबाई का लड़के लड़कियों को श्रम प्रधान शिक्षा देने पर जोर था। उन्हें विचारशील एवं स्वावलम्बी बनाने के लिए उन्होंने 1852 में एक प्रस्ताव में यह विचार रखा था–
“Industrial Department should be attached to the schools in which children would learn useful trades and crafts and be able on leaving school to maintain themselves comfortably and independantly”
वैसी व्यवस्था उन्होंने निर्मित भी की। (महात्मा फुले: शोध के नये रास्ते, प्रस्तावना पृ. 20 ) इस पर हरि नरके ने प्रकाश डाला।
फुले- चरित्र का अर्थ निर्णयन हरि नरके ने जीवन भर किया उसके लिए विविध असली कागज पत्र खोजकर उनका अध्ययन किया। महात्मा फुले का शिक्षण विचार जनता तक पहुंचाने का काम उन्होंने दिन- रात किया, उसके साथ साथ सावित्रीबाई फुले का साहित्य ढूंढ़कर उसका उन्होंने प्रकाशन किया, इस काम में उन्होंने शासन व्यवस्था का भरपूर उपयोग किया, महात्मा फुले के विचार व्यूह और चरित्र के प्रसार का काम हरि नरके ने किया। उसके लिए वे महाराष्ट्र भर में घूमते रहे। उत्तम वक्ता, अभ्यासक, संशोधक, झकझोर गया, ऐसा कभी कभी लगते रहता है।
मराठी भाषा को अभिजात दर्जा मिले इसके लिए वे पठारे समिति में सक्रिय थे, इसके संबंध में विस्तृत रिपोर्ट केन्द्र सरकार को प्रस्तुत की गई उसके लिए अनेक कागज पत्र उन्होंने खोजकर उन्हें रिपोर्ट में सम्मिलित किया। मराठी भाषा अभिजात है यह किसी को कहने की जरूरत नहीं है किन्तु अभी भी केन्द्र सरकार द्वारा यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया गया है। हरि नरके के जीवन काल में यह काम हुआ होता तो वह एक दुर्लभ क्षण सिद्ध हुआ होता।
अन्य पिछड़ा वर्ग समाज की समस्याओं का हरि नरके ने गहराई से अध्ययन किया था,जिसका अपनी लेखनी व वाणी से वे सतत वर्णन करते रहते थे, महात्मा फुले समता परिषद में वे सक्रिय थे उसके माध्यम से वे ओबीसी के सवालों को तथ्य परक ढंग से रखते रहते थे खूब अध्ययन किए हुए इस सत्यशोधक कार्यकर्ता को अनेक संदर्भ तो कंठस्थ थे।
94 वें अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन के स्वागताध्यक्ष छगन भुजबल थे, उन्होंने अपने स्वागत भाषण की उत्तम तैयारी की थी फिर भी कुछ अपूर्णता न रह जाय इसके लिए वह भाषण उन्होंने हरि नरके को भेजा और हरि नरके ने उस भाषण में कुछ नये संदर्भ जोड़कर भुजबल को दिया था। साहित्य सम्मेलन का छगन भुजबल का वह भाषण अत्यंत उत्तम दर्जे का हुआ क्योंकि भाषण में नासिक का सांस्कृतिक संदर्भ और सत्य शोधक विचार की सुंदर बुनावट भुजबल ने किया था।
साहित्य सम्मेलन के निमित्त मैं और हरि नरके एक दूसरे से बात कर रहे थे, हरि नरके को एक सत्र के लिए बुलाया जाय यह महामंडल की पत्रिका में निश्चित हुआ था, उस समय हरि नरके ने मुझे फोन करके कहा, ‘अरे मुझे किसानों के परिसंवाद में बोलना है खेती के सवाल को टालकर अपने साहित्य का विचार हो ही नहीं सकता’, उन्होंने अपने भाषण में किसानों की समकालीन स्थिति कितनी जटिल हो चुकी है इसका वर्णन किया।
हरि नरके को मुद्रित माध्यमों के साथ साथ नवमाध्यम (माडर्न कम्युनिकेशन) का अंदाज लग चुका था इसलिए वे लगातार इस माध्यम पर सक्रिय थे अनेक विषयों पर उन्होंने गंभीर तथ्यात्मक विचारों को सोशल मीडिया के माध्यम से अपने लेखन द्वारा किया। दृकश्राव्य नवमाध्यम का उन्होंने सुसंगत उपयोग किया भविष्य में हमें यह देखने को मिलेगा।
हरि नरके ने हजारों व्याख्यान दिए, सतत प्रवास किया इस प्रवास में उन्हें कुछ बीमारियों का सामना करना पड़ा, उत्तम चिकित्सीय सुविधा संपन्न अस्पतालों में उन्होंने इलाज भी कराया, किन्तु चिकित्सा क्षेत्र की अव्यवस्था और अपूर्णता की मार इस समाज चिंतक को झेलनी पड़ी और वे अनंत की यात्रा पर निकल गए।
सामाजिक आंदोलन और प्रगतिशील विचारों पर अग्रसर समाज को आज हरि नरके की विशेष जरूरत थी ऐसे समय में उनका जाना यह समाज के लिए अपूरणीय क्षति है।
प्रो. डा. शंकर बोन्हाडे
9226573791
मराठी से हिंदी अनुवाद
चन्द्र भान पाल
7208217141