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शिक्षक, एक सुसभ्य एवं शांतिपूर्ण राष्ट्र व विश्व के निर्माता हैं! -डॉ जगदीश गाँधी, संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

शिक्षक, एक सुसभ्य एवं शांतिपूर्ण राष्ट्र व
विश्व के निर्माता हैं!
-डॉ जगदीश गाँधी, संस्थापक-प्रबन्धक,
सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

Akluj Vaibhav News Network.
Chief Editor Bhagywant Laxman Naykude.
Akluj , Taluka Malshiras District Solapur Maharashtra State, India.
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लखनऊ दिनांक : 31 अगस्त।शिक्षक, एक सुसभ्य एवं शांतिपूर्ण राष्ट्र व
विश्व के निर्माता हैं! ऐसा विचार
डॉ जगदीश गाँधी (संस्थापक-प्रबन्धक,
सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ)ने प्रस्तुत लेख मे प्रगट किया है ।
(1) किसी भी देश की शिक्षा नीति की सफलता शिक्षकों पर निर्भर:-
देश के सभी महान शिक्षकों को शिक्षक दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें। किसी ने सही कहा है कि ‘एक अच्छी शिक्षा किसी को भी बदल सकती है, लेकिन एक अच्छा शिक्षक सारे समाज, राष्ट्र और विश्व को बदलने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।’ 5 सितम्बर को आज एक बार फिर सारा देश भारत के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन का जन्मदिवस ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाने जा रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि अगर किसी राष्ट्र की शिक्षा नीति अच्छी है तो उस देश को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता। लेकिन मेरा ऐसा मानना है कि शिक्षा प्रणाली कोई भी हो, कैसी भी हो, उस देश की शिक्षा नीति की सफलता पूरी तरह से उस देश के शिक्षकों पर निर्भर है। ऐसे में किसी भी देश को बिना सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों के सहयोग से कभी भी बुलंदियों तक नहीं ले जाया जा सकता है। पाऊलो फेरी के अनुसार ‘‘शिक्षा लोगों को बदलती है, और लोग शिक्षा द्वारा दुनियाँ को बदल सकते हैं।’’
(2) शिक्षक अपने बच्चों को जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं:-
डॉ. राधाकृष्णन छात्रों को लगातार उच्च नैतिक मूल्यों को अपने आचरण में उतारने के लिए प्रेरित करते रहते थे। उनका मानना था कि करूणा, प्रेम और श्रेष्ठ परंपराओं का विकास भी शिक्षा के उद्देश्य हैं। प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री फ्रॉबेल के अनुसार – ‘‘शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है, जो बालक के आन्तरिक गुणों और शक्तियों को प्रकाशित करती है।इस प्रकार एक कुशल शिक्षक ही बालक के आन्तरिक गुणों को पहचान कर उनको विकसित कर सकता है। बिना शिक्षक के यह कार्य संभव नहीं है। वास्तव में शिक्षक ही बच्चों को एक अच्छा इंजीनियर, डॉक्टर, न्यायिक एवं प्रशासनिक अधिकारी बनाने के साथ-साथ उसे एक अच्छा इंसान बनने की न केवल दिशा देता है, बल्कि उन्हें इस बात के लिए भी प्रेरित करता है कि कैसे उन्हें अपने ज्ञान का उपयोग विश्व की सारी मानव जाति के कल्याण के साथ ही विश्व में शांति एवं एकता के लिए करना है।
(3) देश का सबसे अच्छा दिमाग, क्लास रूम की आखिरी बेंच पर भी मिल सकता है:-
शिक्षक दिवस का अवसर हो और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की बात ना हो, यह संभव नहीं है। कलाम जी कहा करते थे कि ‘‘देश का सबसे अच्छा दिमाग, क्लास रूम की आखिरी बेंच पर भी मिल सकता है। उनका कहना था कि जो लोग जिम्मेदार, सरल, ईमानदार व मेहनती होते हैं, उन्हें ईश्वर द्वारा विशेष सम्मान मिलता है, क्योंकि वे इस धरती पर उसकी श्रेष्ठ रचना है। वास्तव में एक आदर्श राज्य की पहचान उसके नागरिकों से होती है जो कि राष्ट्र निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण एवं सक्रिय भूमिका निभाते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध में जापान के तहस-नहस हो जाने के बाद वहां के राजा ने कहा था कि – यदि जापान का पुनः निर्माण चाहते हो तो सारी शक्ति शिक्षा के उत्थान पर लगा दो, ऐसी शिक्षा जो आपको चरित्रवान, देशभक्त, निष्ठावान व ईमानदार नागरिक दे सके। अन्ततः ऐसा ही हुआ और आज जापान का उदाहरण सारे विश्व के सामने हैं।
(4) शिक्षक कभी भी साधारण नहीं होता:-
समाज में शिक्षक की महत्ता को रेखांकित करते हुए डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने लिखा है कि ‘‘समाज में अध्यापक का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को बौद्धिक परम्परायें और तकनीकी कौशल पहुंचाने का केंद्र बिन्दु है और सभ्यता के प्रकाश को प्रज्ज्वलित रखने में सहायता देता है।’’ आचार्य चाणक्य के अनुसार ‘‘शिक्षक कभी भी साधारण नहीं होता, प्रलय और निर्माण उसकी गोद में पलते हैं।’ वास्तव में शिक्षक समाज की वह धुरी है, जिसके द्वारा देश का नव निर्माण करने वाले नौनिहालों का भविष्य गढ़ा जाता है। वास्तव में शिक्षक ही वह शिल्पकार हैं, जो कि बच्चों को एक सुन्दर ढांचे में ढालकर उन्हें समाज, देश व विश्व के लिए सबसे उपयोगी नागरिक एवं अच्छा इंसान बनाते हैं। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ और ‘आचार्य देवो भवः’ की महान संस्कृति वाले इस देश को कभी इसके महान शिक्षकों के कारण ही विश्व गुरू कहा जाता था।
(5) करूणा, प्रेम और श्रेष्ठ परंपराओं का विकास भी शिक्षा के उद्देश्य:-
महर्षि अरविन्द के अनुसार ‘‘शिक्षक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से सींचकर उन्हें शक्ति में परिवर्तित करते हैं। ऐसे में वर्तमान में विश्व के प्रत्येक बालक को भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों गुणों को विकसित करने वाली संतुलित शिक्षा मिलनी चाहिए। इस प्रकार संतुलित शिक्षा का उद्देश्य मानव जाति को 1. ईश्वरीय अनास्था, 2. अज्ञानता, 3. संशयवृत्ति तथा 4. अन्तरिक संघर्ष से मुक्त करने के साथ ही प्रत्येक बच्चे को इस धरती का प्रकाश बनाना होना चाहिए। इसके लिए एक शिल्पकार एवं कुम्हार की भाँति ही शिक्षकों का यह प्रथम दायित्व एवं कर्त्तव्य है कि वह अपने यहाँ अध्ययनरत् सभी बच्चों को इस प्रकार से संवारे और सजाये कि उनके द्वारा शिक्षित किये गये सभी बच्चे ‘विश्व नागरिक’ बनकर सारे विश्व को अपनी रोशनी से प्रकाशित करें।
(6) शिक्षक एक सुसभ्य एवं शांतिपूर्ण राष्ट्र व विश्व का निर्माता है:-


शिक्षक वह पथ-प्रदर्शक होते हैं, जो अपने छात्रों को केवल किताबी ज्ञान ही नहीं देते बल्कि उन्हें जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं। वह उन्हें सिखाते हैं कि कैसे उन्हें अपने ज्ञान का उपयोग मानव कल्याण में करना है न कि मानव विनाश में। इसलिए प्रत्येक शिक्षक को अपने सभी छात्रों को एक सुन्दर एवं सुरक्षित भविष्य देने के लिए तथा सारे विश्व में शांति एवं एकता की स्थापना के लिए उनके कोमल मन-मस्तिष्क में बचपन से ही भारतीय संस्कृति और सभ्यता के रूप में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’, विश्व एकता, विश्व शांति एवं जय जगत् की शिक्षा देनी चाहिए। वास्तव में शिक्षक एक सुसभ्य एवं शांतिपूर्ण राष्ट्र और विश्व का निर्माता है और विश्व के सभी विद्यालय शांति की पौधशालाएँ हैं। इन्हीं पौधशालाओं में बच्चों के मस्तिष्क में बचपन से ही शांति रूपी बीज को बोने के साथ ही एकता रूपी खाद और मानवता रूपी पानी से सींचकर उन्हें विश्व नागरिक के रूप में तैयार किया जा सकता है, जैसा कि सी.एम.एस. विगत 64 वर्षों से करता आ रहा है।

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Chief Editor

भाग्यवंत लक्ष्मणराव नायकुडे Chief Editor Bhagywant Laxmanrao Naykude. Akluj, Taluka Malshiras, District Solapur. Maharashtra state, India. Mo. 98 60 95 97 64

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